स्वमूत्र चिकित्सा क्या है?
मनुष्य दिन भर में जितना पानी पीता है उसका अधिकांश भाग मूत्र द्वारा शरीर से त्याग देता है। हमारे शरीर का विकार विषाक्त अंश मूत्र के द्वारा बाहर निकलता है। पानी शरीर के बाहरी भाग को शुद्ध करता है साथ शरीर के भीतर की भी सफाई देता है। इसके लिये यह आवश्यक है कि व्यक्ति को दिन भर लगभग 10 से 12 काँच के गिलास पानी नित्य पीना चाहिये।
स्वमूत्र ईश्वर द्वारा मानवमात्र को दिया गया एक अनौखा वरदान है, क्योंकि यह शरीर के रोगों के कीटाणुओं को नष्ट करता है व हमारी कोशिकाओं, रक्त वाहिनियों को भी शक्ति देता है। रक्त को गुर्दे साफ करता हैं तथा मूत्र के द्वारा शरीर के कुछ मूल तत्व बाहर आ जाते हैं। मूत्र में ऐसे तत्व होते हैं. जिनको पीने से प्रायः रोगी भी स्वस्थ हो जाते हैं। मूत्र में नाइट्रोग्लिसरीन होत है जो हृदय रोग में लाभ देता है, यूरोकाइनेज जो रक्त में थक्के बनने से रोकत है। जिससे रक्त में जमाव का रोग थ्रोम्बाइसेस रोग उत्पन्न नहीं हो पाता है।
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हमारे मूत्र में यूरिया (नाईट्रोजन), क्रियोटिनिन, यूरिक एसिड, एनिमा ए एमोनिया, यूरिक एसिड एन, सोडियम, पोटेशियम, क्रिर्यटिनिन, कैल्शिय मेगैनिशयम, क्लोराइड, टोटल सल्फर इन आर्गेनिक, सल्फर इनआर्गेनि फास्फेट आदि तत्व होते है।
इसके साथ साथ मूत्र में क्षार, विटामिन, एंजाइम हार्मोन्स हादि के साथ साथ अनेक पोषक तथा रोग निवारक तत्व भी होते है।
स्वमूत्र चिकित्सा विधि
मूत्र से घृणा करने पर इसका प्रयोग करना मुमकिन नहीं है। अधिक पानी का प्रयोग करने पर अधिक मूत्र में न तो गंध ही होती है और न ही अधिक कसैलापन होता है।
मूत्रपान सुबह करना उचित है। सूर्योदय से पहले मूत्र के बीच की धार को मिट्टी या तांबे के बर्तन में इक्कठा करने, पीने से लाभ होता है | इसकी मात्रा को 20 सी.सी. से धीरे-धीरे बढ़ा कर 300 सी.सी. तक लाया जा सकता है।
मूत्रपान करने में शुरू शुरू में गंध व घृणा को दूर करने के लिए पहले इसका केवल कुल्ला भर ही करें। मुंह में भर के फेंक दें। इससे मसूड़े व दांत मजबूत होते हैं व पायरिया उत्पन्न नहीं हो पाता है। फिर मूत्र को अधिक समय तक मुंह में रखना व धीरे-धीरे एक-एक बूंद करके पीने से घृणा समाप्त हो जाती है।
दूसरी बार आए मूत्र को शीशी कांच की में रख लें। गंदगी / मिट्टी / अन्य वस्तुऐं जो धारक नीचे बैठ जाएगी। ऊपर का स्वमूत्र स्वच्छ जल घूंट घूंट करके पी जावे और फिर पार्क में घूमने जावे। चाय, काफी से पहले स्वमूत्र ले लें। यह हृदय रोग, पेट दर्द, इसमें शारीरिक रोग निवारक तत्व होते है। जो मनुष्य या पशुवर्धन लोग भी पीते है।