हींग(Hing) की तासीर –
यह गरम, खुश्क, दीपन, वायु को शांत करने वाली, शोथ को कम करने वाली, मूत्र विकारों को दूर करने वाली होती है। इसके प्रयोग से गले में कफ पतला होकर बाहर निकल जाता है। यह भोजन में युक्त प्रोटीन, कार्बोज और वसा को आसानी से पचा देती है। इसका वर्ग-दीपन, पाचन, चित्रक तथा काला नमक के साथ बढ़ जाता है। इसका सेवन करने से शरीर हृष्ट-पुष्ट हो जाता है। यह पेट के विकारों को दूर कर पाचन क्रिया को तेज करती है।
हींग भूख बढ़ाने में काफी सहायक सिद्ध होती है। एनीमिया रोग में हींग के पानी का प्रयोग करने से कृमि तथा आंतों के रोग ठीक हो जाते हैं। खांसी को कम करने के लिए यह श्वास के केन्द्र-संस्थान की क्रिया को धीमा कर देती है। इसमें ऐसे विचित्र गुण हैं कि यह पेट फूलना, आमाशय आंतों की शिथिलता, उदरशूल और कब्ज को आसानी से दूर कर राहत दिलाती है।
हींग(Hing) के औषधीय गुण
चरक, जो कि पुरातत्त्व समय के जाने-माने औषधि विशेषज्ञ थे, वे भी हींग के बारे में लिखा है – हींग वात और कफजन्य विकारों को दूर करने वाली, कटुरस, उष्णवीर्य, दीपन, लघुशूल नाशक, दोषों को पचाने वाली तथा भोजन में रुचि उत्पन्न करने वाली औषधि है।
शुद्ध हींग(Hing) की पहचान
आजकल बाजार में खाने-पीने की लगभग प्रत्येक वस्तु में मिलावट पायी जाती है। अतः हींग भी इस दौर से पीछे नहीं है। ऐसे मिलावटी दौर में हमें नकली हींग के प्रयोग से बचना चाहिए, क्योंकि यह पेट के लिए हानिकारक होती है। हींग की इसी शुद्धता की जांच के लिए वैद्य एवं पंसारी बताते हैं कि शुद्ध हींग भूरे रंग की होती है और इसकी गंध दूर से ही पता चल जाती है। हींग को हाथ से मसलने पर यदि तेल निकलता है तो हींग शुद्ध होती है। शुद्ध हींग पानी में घुलकर भी रंग व खुशबू बरकरार रखती है। यदि शुद्ध हींग को जलाया जाय तो यह तेल की भांति जल जाती है।