आहार : पकाया हआ और कच्चा
आहार को पकाकर खाने की प्रथा बहुत पुरानी है। हजारों वर्ष पहले हमारे पूर्वजों ने आहार को पकाने की जो प्रथा शुरू की थी, वह आज भी प्रचलित है। मनुष्य के अतिरिक्त कोई भी प्राणी पकाये हुए आहार का सेवन नहीं करता। इसीलिए शायद कोई प्राणी बीमारियों का शिकार भी नहीं होता।
पकाने से आहार के पोषक एवं उपयोगी तत्व नष्ट हो जाते हैं और वह सत्त्व रहित हो जाता है। ऐसे सत्वहीन आहार से शरीर को शक्ति, स्वास्थ्य या पोषण प्राप्त होने की कोई सम्भावना नहीं रहती। जीवन से ही जीवन को उत्पत्ति सम्भव है। सत्त्वहीन आजार नवजीवन देने में तो असमर्थ होता ही है, साथ ही वर्तमान जीवन भी चेतनहीन हो जाता है |
शिकागों के डॉ. जॉर्ज जे. ड्रस का कहना है कि मानवजाति को प्राचीन काल से ही पकाए हुए आहार का चसका लगा हुआ है। आज के अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोग पकाए हुए आहार का सेवन करने का ही परिणाम हैं।
लोगों में आमतौर पर यह धारणा व्याप्त है कि आहार की जरूरत हमे शारीरिक ऊर्जा एवं गर्मी प्राप्त करने, शक्ति बनाये रखने एवं शरीर को सक्रिय रखने के लिए होती है | लेकिन लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि हमारे शरीर का निरन्तर क्षय होता रहता है। पुरान कोष नष्ट होते रहते हैं और उनका स्थान लेने के लिए नए कोष उत्पन्न होते रहते | नव-सृजन की यह प्रक्रिया जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है और यह आहार की गुणवत्ता पर निर्भर रहती है। नियमित रूप से नव-सृजन के लिए आहार में प्रजीवक, क्षार और ऍन्जाइम का होना अत्यन्त आवश्यक है।
इसके साथ ही प्रजीवक और ऍन्जाइम इसलिए भी जरूरी हैं कि भोजन में समाविष्ट प्रोटीन, कार्बोदित पदार्थ, स्निग्ध पदार्थ आदि शरीर में पूर्णत: आत्मसात हो सकें। ये प्रजीवक और एंन्जाइम पकाए हुए भोजन में काफी हद तक नष्ट हो जाते हैं।
केवल स्वाद को ध्यान में रखकर लिया जाने वाला आहार शारीरिक आवश्यकताओं सन्तुष्ट नहीं कर सकता। हाँ, पकाया हुआ आहार अपेक्षाकृत मुलायम और मसालों तथा मिठास आदि के कारण स्वादिष्ट जरूर लगता है। इसलिए ऐसा आहार हम आवश्यकता से अधिक मात्रा में लेते हैं। फलस्वरूप हमें अपच हो जाता है, जिससे बाद में अनेक बीमारियां जैसे डायबिटीज उपचार, उच्चरक्तचाप आदि का जन्म होता है।
पकाने से भोजन के प्रजीवक और ऍन्जाइम तो नष्ट होते ही हैं , उसमें अनेक विकृतियाँ भी उत्पन्न हो जाती हैं । इस प्रक्रिया के कारण आहार के बचे – खुचे प्रोटीन और कार्बोदित पदार्थ भी सुपाच्य नहीं रह पाते । आँतों में उनका आसानी से शोषण नहीं होता । इस प्रकार पकाया हुआ भोजन सत्त्व की दृष्टि से पोषक नहीं रह जाता । तन्दुरुस्त व्यक्ति के लिए वह थोड़ा – बहुत पोषक भले हो , मगर वृद्ध या बीमार व्यक्ति के लिए तो वह एकदम बेकार होता है ।
प्रश्न यह है कि क्या हम पकाए हुए आहार के प्रति अपना रुझान कम नहीं कर सकते ?
क्या उसके बदले हम कच्चे और प्राकृतिक आहार का चुनाव नहीं कर सकते ?
कुछ लोग डरते हैं कि कच्चे आहार से पेट में भारीपन, पेट दर्द का उपाय या गैस पैदा होगी । मगर उनका यह डर फिजूल है । प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि जहाँ कच्चे आहार को पचने में तीन से चार घंटे ही लगते हैं , वहीं पकाए हुए आहार को पचने में पाँच से छह घंटे लग जाते हैं । किन्तु फलों और सब्जियों के रस तो 25 से 30 मिनट के अन्दर ही पच जाते हैं और रक्त के रूप में रूपान्तरित होने लगते हैं ।
इन तथ्यों से स्पष्ट है कि कच्चा आहार और ताजा रसाहार शरीर के लिए अत्यधिक पाषक होता है और इससे नव – सृजन की प्रक्रिया को गति मिलती है । अन्न को पकाने से उसके पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं , जबकि उसे अंकुरित करने से उसमें इन तत्त्वों की अत्यधिक वृद्धि होती है । अंकुरित दलहनों में विटामिन के रूप में स्थित थायामिन ( प्रजीवक बी ) , पन्टोथिनिक ऍसिड , नियसिन आदि में 600 प्रतिशत तक की वृद्धि हो जाती है ।
अंकुरित अनाजों एवं दलहनों से हमें विटामिन ‘ए’ तथा सी की प्राप्ति होती है । बच्चों के शीघ्र विकास एवं माँ के दूध में वृद्धि के लिए अंकुरित धान्य – दलहन अत्यधिक उपयोगी हैं । पारंपरिक रिवाजों को त्यागकर यदि हम पकाए हुए आहार के बदले अपने भोजन में पचास प्रतिशत भी कच्चा आहार लेना आरम्भ कर दें , तो दिन पर दिन हमारे स्वास्थ्य में सुधार होता जाएगा ।